मंगलवार, 31 अगस्त 2021

जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919)

#इतिहास के पन्ने

जलियांवाला बाग हत्याकांड (13/4/1919):-

यू तो कहां जाता है कि इतिहास की हर एक घटना एक दूसरे से जुड़ी हुई होती है जो कि कहीं ना कहीं सही भी है पर आज जिस घटना के बारे में हम बात करने वाले हैं उस घटना के लिए हमें प्रथम विश्वयुद्ध द्वितीय विश्वयुद्ध और रौलट एक्ट को जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह घटना अपने अंदर ही पूरा इतिहास समाए हुए हैं आज हम जाने वाले हैं  जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में ये बात है सन 1919 की जब रॉलेट एक्ट  पूरे भारत में छाया हुआ था ,जैसे जैसे समय के साथ रॉलेट एक्ट की जड़े कमजोर हो रही थी उसी क्रम में भारत में जलियांवाला बाग  का प्रकोप बरसा तो हुआ कुछ यूं था की : 

°जलियांवाला बाग (अमृतसर, पंजाबत )⬇️


रॉलेट एक्ट के विरोध में सन
1919 ईस्वी में देशभर में जो विद्रोह चल रहा था उसी के कर्म में 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में अत्याचारी ब्रिटिश सेना द्वारा असंख्य लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया अत: इसी घटना को जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है इसका संक्षिप्त उत्तर निम्नलिखित है , 
10 अप्रैल से 12 अप्रैल के बीच अमृतसर में बेहतर हलचल थी 11 अप्रैल को सरकार ने स्थिति को काबू में रखने के लिए सैनिक शासन पूरे पंजाब में लागू करवा दिया जनरल डायरेक्टर वहा दहशत फैलाने लगा सभा एवं प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई , स्थानीय जनता ने अपने अपने नेताओं की गिरफ्तारी, निष्कासन एवं उन पर किए जाने वाले अत्याचारों के खिलाफ जलियांवाला बाग में एक सभा बुलाई जो ठीक शाम 4:00 बजे शुरू होने वाली थी ।

°जलियांवाला बाग चारों तरफ से मकानों से घिरा हुआ⬇️
 

स सभा में भारी संख्या में लोग जमा हुए एवं अपने नेताओं का भाषण सुनने लगे ठीक उसी समय जनरल डायर 50 अंग्रेजी और 100 भारतीय सैनिकों के साथ वहां आ पहुंचा और आने के बाद बिना लोगों को सावधान किए ही वहां आकर गोली चलाने का आदेश दे दिया आपकी जानकारी के लिए बता दें की जलियांवाला बाग में आने जाने के लिए केवल एक ही दरवाजा था उसे भी बंद करवा दिया गया , यह सोचकर ही मन कांप उठता है कि शांत सभा में जहां सब अपने अपने नेताओं का भाषण सुन रहे हो वहां अचानक गोलियों की बरसात होने लगती हैं, सैनिकों के पास जितनी भी गोलियां थी वह सब निर्दोष लोगों के ऊपर बेवजह चला दी गई आखिर में जब लोगों को अपनी जान बचाने के लिए कोई जगह नहीं मिली तो वह बगीचे में बने एक कुएं में कूदने लगे लेकिन कुआं भी बहुत ही जल्द भर गया परंतु डायर के निर्दई सैनिकों ने उस कुए के अंदर गोलियां चलानी आरंभ कर दी इस प्रकार हम देख सकते हैं कि जनरल डायर ने यहां अपनी निर्दयता का नम्र प्रदर्शन किया है । पूरी तरीके से तो नहीं कहा जा सकता परंतु सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 10 मिनट तक गोलियां चलाई  गई जोकि "तोप और एनफील्ड राइफल" से निकली हुई थी।

°जलियांवाला बाग हत्याकांड की गोलियों वाली दीवारें ⬇️


स घटनाक्रम में 1389 लोगों की मृत्यु हुई और 2000 लोग घायल हुए परंतु सत्य तो यह है कि इस घटनाक्रम में कोई जीवित बचा ही नहीं था केवल एक बालक के जिसे हम सभी उधम सिंह के नाम से जानते हैं। अब सरकारी रिपोर्ट में कितनी सच्चाई है यह तो हम नही कह सकते परंतु इतना जरूर कह सकते हैं कि जलियांवाला से उधम सिंह के अलावा कोई जीवित बच कर आया ही नहीं था ।
इसके पश्चात हम देख सकते हैं कि जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारत की आजादी में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एवं उस समय भारत में जितने भी आंदोलन चल रहे थे उन सब में एक नया मोड़ ला दिया जलियांवाला बाग हत्याकांड एक भयानक सपने की भांति है जिसने हमारे भारत की आजादी की लड़ाई और हमारे इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है 

• जलियांवाला बाग हत्याकांड का परिणाम :

1- इस घटना के बाद गांधी जी ने "केसरी हिंद की"उपाधि का त्याग किया जो कि उन्हें अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गई थी ।
2- इस घटना के बाद रविंद्र नाथ टैगोर ने "नाइट हुड" की उपाधि का त्याग किया जो कि उन्हें अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गई थी।
3- इस घटना के बाद गांधी जी ने अपना पहला आंदोलन 1920 ईस्वी में असहयोग आंदोलन के नाम से शुरू किया ।
4- इस घटना के बाद हिंदू तथा मुसलमानों के बीच एकता की स्थापना हुई जो कि किसी भी देश की आजादी के लिए सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र होता है।
5- इसके बाद भारत में जितने भी आंदोलन आजादी प्राप्ति के लिए लड़े जा रहे थे उन सब में एक नया मोड़ आ गया ।


1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

You have good knowledge about history yarr

जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919)

#इतिहास के पन्ने जलियांवाला बाग हत्याकांड (13/4/1919):- यू तो कहां जाता है कि इतिहास की हर एक घटना एक दूसरे से जुड़ी हुई होती है जो कि कहीं ...